पंचांग समय की पांच इकाइयों का समावेश है। पंचांग समय के पाँच अंग जो तिथि, वार, नक्षत्र, योग व् करण में विभाजित है। पंचांग को ज्योतिष का दर्पण माना जाता है पंचांग देखकर ही व्यक्ति के भविष्य की सटीक जानकारी प्राप्त की जा सकती है। पंचांग एक लोकप्रिय हिन्दू कैलेंडर है। पंचांग में एक दिन सूर्योदय से शुरू होकर अगले सूर्योदय तक होता है। पंचांग के माद्यम से पर्व, धार्मिक अनुष्ठान, महत्वपूर्ण कार्यक्रम व् शुभ कृत्यों के लिए सही मुहूर्त प्राप्त होता है। किसी स्थान का पंचांग उसके अक्षांश रेखांश पर आधारित होता है। कार्य के शुभ परिणाम के लिए पंचांग देखना अपेक्षित है।
पंचांग ज्योतिष का आधारभूत है पंचांग की जानकारी मात्र से ही ज्योतिष के कई पहलुओं को ज्ञात कर सकते है। जन्मे बच्चे का पंचांग पर कुंडली का निर्माण व् विश्लेषण निर्भर होता है। वैदिक काल से कालगणना का सर्वोत्तम साधन हिंदू पंचांग है। पंचांग के अनुसार ही हिन्दुओं, बौद्धों, जैनों, सिखों के त्यौहार मनाए जाते हैं दैनिक पंचांग के अनुसार धार्मिक व् व्यवहारिक कार्य करना शुभफलदायी होता है।
आज बृहस्पतिवार,21 November 2024 को कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की षष्टी तिथि है। वर्तमान समय में पुष्य नक्षत्र चल रहा है और इस तिथि में चन्द्रमा कर्क राशि में उपस्थित है।
तिथि | आज कृष्ण पक्ष की षष्टी तिथि है। | 17:03:31 (21-11-2024) समय तक है |
नक्षत्र | पुष्य | 15:35:30 (21-11-2024) समय तक है |
वार | बृहस्पतिवार | |
प्रथम कर्ण | वणिजा | 17:03:31 (21-11-2024) समय तक है |
पक्ष | कृष्ण पक्ष | |
सूर्य राशि | वृश्चिक | |
चंद्र राशि | कर्क | |
सूर्य उदय | 06:52:47 | |
सूर्य अस्त | 17:21:06 |
दैनिक पंचांग में तिथि का ज्ञान धन प्रदान करता है, वार का ज्ञान दीर्घायु करता है, नक्षत्र का ज्ञान पापों को मिटाता है, योग का ज्ञान रोग निवारण करता है रोग और करण का ज्ञान कार्य में सफलता सुनिश्चित करता है।
चंद्रमा की एक कला को तिथि कहते है। सूर्य और चन्द्रमा के बीच १२ अंश का अंतर होने पर एक पूर्ण तिथि होती है इसे ही चन्द्रमा की एक कला कहते है। सूर्य और चंद्र के मध्य प्रत्येक १२ १२ का अंशात्मक अंतर एक तिथि कहलाता है। चंद्रमा का एक भचक्र अर्थात ३६० डिग्री का चक्कर काटने पर एक चंद्रमास होता है हिन्दू पंचांग में चंद्रमास के आधार पर ही सभी गणना की जाती है एक चंद्रमास में ३० तिथियां होती है। एक चंद्रमास में २ पक्ष होते है शुल्क पक्ष (उजाला पक्ष) व् कृष्ण पक्ष (अँधेरा पक्ष)
जब चंद्रमा की कलाएं बढ़ती रहती है और पूर्ण कला पर पूर्णिमा तिथि होती है तो यह शुक्ल पक्ष कहलाता है जबकि पूर्णिमा की अगली तिथि से अमावस्या तक चंद्रमा की घटती कलाएं कृष्ण पक्ष के अंतर्गत होती है। चंद्रमा की स्थिर गति से विचरण नहीं करता है इस कारणवश तिथि का समयकाल भी घटता बढ़ता रहता है एक तिथि लगभग १९ से २६ घंटे के बीच होती है किसी तिथि के प्रारंभ व् अंत होने का समय निश्चित नहीं होने से सर्योदय के समय जो भी तिथि होती है वह उस पूरे दिन की तिथि मान ली जाती है। तिथि से आपके विवाह, संबंध, भावनात्मक श्रृंगार, संतुष्टि और तृप्ति का पता चलता है।
जब तिथि सूर्योदय से बाद शुरू होकर सूर्यास्त से पहले अंत हो गयी हो तो इसे तिथि का क्षय होना माना जाता है।यदि तिथि सूर्योदय से पहले शुरू होकर सूर्यास्त के पश्चात भी रहती है तो वह तिथि वृद्धि कहलाती है। तिथि वृद्धि या क्षय कार्य के लिए शुभ नहीं है।
प्राचीन शास्त्रकारों ने तिथियों को कार्य फल के हिसाब से विभिन्न भागों में वर्गीकृत किया है।
नन्दा तिथि प्रतिपदा, षष्ठी, एकादशी को नन्दा तिथि कहते है इन तिथियों में नए कपङे पहनना, घर निर्माण के कार्य, कृषि, उत्सव, गीत-संगीत व् शिल्प कार्यो में शुभफलदायक है।
भद्रा तिथि द्वितीय, सप्तमी व् द्वादश तिथियों को भद्रा तिथियों की संज्ञा दी गयी है। इस तिथि में जो कार्य करते है उसमे बढ़ोतरी होती है इन तिथियों में वाहन क्रय, यात्रा, विवाह, कलात्मक कार्य सीखना इत्यादि अति शुभ होता है।
जया तिथि तृतीय, अष्ठ और त्रयोदशी तिथि जया संज्ञक है। जया तिथियों में सैन्य एडमिशन, कोर्ट कचरी, प्रतियोगात्मक परीक्षा, मुक़दमेबाजी, गृहारम्भ, गृहप्रवेश, औषधि सम्बंधित कर्म के लिए प्रशस्थ होती है।
रिक्ता तिथि रिक्ता तिथि अच्छी नहीं मानी जाती है। गृहस्थ जीवन में गृहस्थ व्यक्तियों के लिए इन तिथियों को शुभ कार्य मना है। शत्रु का दमन, शल्य-क्रिया, शस्त्र प्रयोग आदि क्रूर कर्मो को इन तिथियों में करने चाइये।
पूर्णा तिथि पूर्ण तिथियों में मँगनी, विवाह, भोज का आयोजन, कथा, धार्मिक कार्य सभी कार्य पूर्णता के साथ होंगे।
जब अमावस्या के पश्चात प्रतिपदा से शुक्ल पक्ष की तिथियां आरंभ होती है उस समय चंद्रमा क्षीण अवस्था में होता है अतः इन तिथियों का प्रभाव हमारे ऊपर कम होता है।
सूर्योदय से दूसरे दिन के सूर्योदय तक के समय को वार कहा जाता है। हिन्दू काल गणना में दो सूर्योदय के बीच एक दिनमान होता है एक दिन और रात्रि में २४ होरा होती है घंटे का पर्याय होरा है। प्रत्येक दिन के सूर्योदय के समय जिस ग्रह की होरा होती है वह उस दिन का वार कहलाता है। पहली होरा सूर्य से शुरू की जाती है इसलिए पहला रविवार तत्पश्चात दूसरी होरा चंद्र की होती है अतः सोमवार आता है इसी क्रम में सात वार सात ग्रह के नाम के आधार पर निर्धारित है। सभी वारों के स्वामी ग्रह व् देवी-देवता है।
वार क्रम | वार | वारों के स्वामी देवी-देवता | वारों के स्वामी ग्रह |
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1 | रविवार | शिव | सूर्य |
2 | सोमवार | दुर्गा | चन्द्र |
3 | मंगलवार | कार्तिकेय | मंगल |
4 | बुधवार | विष्णु | बुध |
5 | गुरूवार | बह्रमा | बृहस्पति |
6 | शुक्रवार | इंद्र | शुक्र |
7 | शनिवार | काल | शनि |
आकाश मंडल में तारा पुंजों द्वारा बनायीं विशेष आकृति को ही नक्षत्र की संज्ञा दी गयी है ज्योतिष शास्त्र में कुल २७ नक्षत्रो है जिन्हे प्रत्येक नक्षत्र ४ पाड़ा में विभाजित किया गया है। एक नक्षत्र १३° २० कला का होता है और चन्द्रमा एक नक्षत्र की दूरी लगभग १ दिन में पूर्ण करता है चँद्रमा द्वारा सभी २७ नक्षत्रो का भ्रमण पूर्ण करने को एक नक्षत्र मास कहते है। वैदिक ज्योतिष में चंद्र नक्षत्रो का ही प्रयोग किया जाता है क्योकि चंद्रमा मन का स्वामी है और पृथ्वी के अत्यंत निकट है जिससे चंद्रमा नक्षत्रो का गर्भस्थ शिशु पर विशेष प्रभाव रहता है।
योग का अर्थ है 'जोड़' अर्थात सूर्य और चंद्रमा के देशान्तर का जोड़ योग कहलाता है। योग कुल २७ प्रकार के होते अतः जिस व्यक्ति का जन्म विशेष योग में होता है उसी योग के गुण उस व्यक्ति में भी देखे जा सकते है।
करण पंचांग का महत्वपूर्ण अंग है जो चन्द्रमा पर आधारित होता है एक तिथि में दो करण होते है अर्थात तिथि का आधा भाग करण कहलाता है। प्रथम करण तिथि के पूर्वार्ध में व् दूसरा उत्तरार्ध में होता है सूर्य और चंद्रमा के बीच ६ डिग्री का अंतर के समय को एक करण कहते है। करण व्यक्ति के प्राकृतिक कौशल और प्रतिभा को दर्शाता है यह करियर, धन, भौतिक सफलता या पतन का कारण बनता है। करण कुल ११ होते है जिनमे ७ चर करण व् ४ स्थिर करण होते है।
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